अफीम की खेती और इसके लिए लाइसेंस लेने का सही तरीका
भारत में अफीम की खेती मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में होती है. वहीं देश के अन्य राज्यों में इसकी खेती नहीं होती है. मध्य प्रदेश के रतलाम, मंदसौर और नीमच जिले में इसकी खेती होती है. भारत में अफीम की खेती कानूनी तौर पर की जाती है. अफीम की खेती वही किसान कर सकते हैं जिनके पास लाइसेंस होता है. अन्य किसान इसकी खेती नहीं कर सकते हैं.
एनडीपीएस एक्ट की अनुमति और मेडिकल और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए अफीम की खेती को विनियमित करने के लिए केन्द्र सरकार कर सकती है। भारत सरकार ने अफीम की खेती के लिए हर साल लाइसेंस जारी करने के लिए सामान्य शर्तों के रूप में के रूप में अच्छी तरह से लाइसेंस प्राप्त किया जा सकता है, जहां इलाकों सूचित करता है। इन सूचनाओं सामान्यतः अफीम नीतियों के रूप में करने के लिए भेजा जाता है। अफीम की खेती मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों में अधिसूचित इलाकों में अनुमति दी है। सामान्य शर्तों, दूसरों के बीच में, एक न्यूनतम अर्हक यील्ड (एम क्यु वाई), इन तीन राज्यों में से प्रत्येक के कृषकों द्वारा प्रस्तुत किए जाने की सफल वर्ष में लाइसेंस के लिए पात्र होने के लिए शामिल हैं।
आम लोगों के लिए अफीम एक लोकप्रिय मादक पदार्थ माना जाता है. आमतौर इसे लोग हैरोइन का सोर्स मानते हैं. लेकिन देश में अफीम का उपयोग वैध ड्रग व्यापार के लिए होता है. इसके बीजों से प्राप्त मार्फिन, लेटेक्स, कोडेन और पनैनथ्रिन शक्तिशाली एल्कालोड्स का सोर्स होता है. इसके बीजों में अनेक रासायनिक तत्व पाए जाते हैं.
कैसा होता है अफीम का पौधा
आमतौर पर अफीम पौधे की लंबाई 3-4 फुट होती है. यह हरे रेशों और चिकने काण्डवाला पौधा होता है. अफीम के पत्ते लम्बे, डंठल विहीन और गुड़हल के पत्तों जैसा होता है. वहीं इसके फूल सफ़ेद और नीले रंग और कटोरीनुमा होते हैं. जबकि अफीम का रंग काला होता है. इसका स्वाद बेहद कड़वा होता है. इसे हिंदी में अफीम, सस्कृत में अहिफेन, मराठी आफूा और अंग्रेजी ओपियुम और पोपी कहा जाता है.
अफीम की खेती के लिए लाइसेंस की प्रक्रिया
केंद्रीय नारकोटिक्स विभाग लाइसेंस देने की प्रक्रिया और उपज लेने की प्रक्रिया को पूरा करता है. भारत में पहले अन्य राज्यों में अफीम की खेती के प्रयास किए गए. लेकिन वहां का मौसम इसकी खेती के लिए अनुकूल नहीं रहा. इसलिए उन राज्यों के किसानों के लाइसेंस निरस्त कर दिए गए. वर्तमान में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्य में ही इसकी खेती होती है. यह लाइसेंस उन्हीं किसानों को मिलता है जो पहले से ही अफीम की खेती कर रहे हैं और सरकारी नियमों का पालन किया हो.
सरकार के मापदंडों के मुताबिक, उत्पादन और गुणवत्ता दी हो. पात्र किसानों को लाइसेंस एक साल के लिए दिया जाता है. एक साल के बाद फिर से नया लाइसेंस जारी किया जाता है. सरकार अपनी अफीमनीति के तहत लाइसेंस देती है. इसके लिए लाइसेंस के लिए कोई आवेदन नहीं करना पड़ता है बल्कि पहले से मौजूद रिकॉर्ड के आधार पर ही लाइसेंस दिया जाता है. इसके लिए यह भी देखा जाता है कि जो किसान इसकी खेती कर रहा है उसके ऊपर स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम-1985 का कोई आरोप तो नहीं है.
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वर्ष 2021-22 की अफीम नीति-
केंद्र सरकार ने साल वर्ष 2020-21 के लिए अफीम नीति जारी कर दी है. जिसके तहत अफीम करने क्षेत्रों में किसानों को अफीम के पट्टे जारी कर दिए गए हैं. वहीं अफीम की खेती करने वाले किसानों को सरकार ने कुछ सौगातें भी दी है. इस साल अफीम खेती के लिए आवश्यक न्यूनतम मार्फिन का मानक 4.2 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखा गया है. बता दें कि पिछले साल देश के 39 हजार किसानों ने अफीम की खेती की थी.
अफीम की खेती करने की विधि
जलवायु
अफीम की फसल को समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियम तापमान की आवश्यकता होती है।
भूमि
अफीम को प्राय: सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है परन्तु उचित जल निकास एवं पर्याप्त जीवांश पदार्थ वाली मध्यम से गहरी काली मिट्टी जिसका पी.एच. मान 7 हो तथा जिसमें विगत 5-6 वर्षों से अफीम की खेती नहीं की जा रही हो उपयुक्त मानी जाती है।
खेत की तैयारी
अफीम का बीज बहुत छोटा होता है अत: खेत की तैयारी का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए खेत की दो बार खड़ी तथा आड़ी जुताई की जाती है। तथा इसी समय 20-30 गाड़ी अच्छी प्रकार से सड़ी गोबर खाद को समान रूप से मिट्टी में मिलाने के बाद पाटा चलाकर खेत को भुरा-भुरा तथा समतल कर लिया जाता है। इसके उपरांत कृषि कार्य की सुविधा के लिए 3 मी. लम्बी तथा 1 मी. चौड़ी आकार की क्यारियां तैयार कर ली जाती हैं।
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प्रमुख किस्में
जवाहर अफीम-16, जवाहर अफीम-539 एवं जवाहर अफीम-540 आदि मध्य प्रदेश के लिए अनुसंशित किस्में हैं
बीज दर तथा बीज उपचार- कतार में बुवाई करने पर 5-6 कि.ग्रा. तथा फुकवा बुवाई करने पर 7-8 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। बीप्रति किलो बीज में 10 ग्राम नीम का तेल मिलाकर उपचारित करने के बाद ही बोयें |
बुवाई समय
अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक आवश्यक रूप से कर दें।
बुवाई विधि
बीजों को 0.5-1 से.मी. गहराई पर 30 से.मी. कतार से कतार तथा 0-9 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी रखते हुए बुवाई करें।
निदाई- गुड़ाई तथा छटाई
निंदाई-गुड़ाई एवं छटाई की प्रथम क्रिया बुवाई के 25-30 दिनों बाद तथा दूसरी क्रिया 35-40 दिनों बाद रोग व कीटग्रस्त एवं अविकसित पौधे निकालते हुए करनी चाहिए। अन्तिम छटाई 50-50 दिनों बाद पौधे से पौधे की दूरी 8-10 से.मी. तथा प्रति हेक्टेयर 3.50-4.0 लाख पौधे रखते हुए करें।
खाद एवं उर्वरक
अफीम की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए मृदा परीक्षण !के आधार पर खाद एवं उर्वरक की अनुशंसित मात्रा का उपयोग! करें। इस हेतु वर्षा ऋतु में खेत में लोबिया अथवा सनई कि हरी खाद! बोना चाहिए। हरी खाद नहीं देने की स्थिति में 20-30 गाड़ी अच्छी प्रकार से सड़ी !हुई गोबर खाद खेत की तैयारी के समय दें। इसके अतिरिक्त यूरिया 38 किलो, !सिंगल सुपरफास्फेट 50 किलो तथा म्यूरेट आफ पोटाश आधा किलो गंधक/10 भारी के हिसाब से डालें।
सिंचाई
बुवाई के तुरन्त बाद सिंचाई करें, तदोपरान्त 7-10 दिन की !अवस्था पर अच्छे अंकुरण हेतु, तत्पश्चात 12-15 दिन के अन्तराल पर! मिट्टी तथा मौसम की दशा अनुसार सिंचाई करते रहें। कली, पुष्प, डोडा! एवं चीरा लगाने के 3-7 दिन पहले सिंचाई देना नितान्त आवश्यक होता है। भारी भूमि में !चीरे के बाद सिंचाई न करें एवं हल्की भूमि में 2 या 3 चीरे के !बाद सिंचाई करें। टपक विधि से सिंचाई करने पर आशाजनक परिणाम प्राप्त होते हैं।
फसल संरक्षण
रोमिल फफूंद
जिस खेत में एक बार रोग हो जाए वहां अगले तीन साल तक अफीम नही बोयें | रोग कि रोकथाम हेतु नीम का काढ़ा ५०० मिली लीटर प्रति पम्प और माइक्रो झाइम २५ मिली लीटर प्रति पम्प पानी में अच्छी तरह घोलकर के तीन बार कम से कम तर बतर कर छिड़काव करे छिड़काव बुवाई के तीस, पचास, एवं सत्तर दिन के बाद करें |
चूर्णी फफूंद
फ़रवरी में ढाई किलो गंधक का घुलनशील चूर्ण प्रति हेक्टेयर कि डर से छिड़काव करें |
डोडा लट
फूल आने से पूर्व व डोडा लगने के बाद माइक्रो झाइम ५०० मिली लीटर प्रति हेक्टेयर ४०० या ५०० लीटर पानी में मिलाकर तर बतर कर छिड़काव करे |
अच्छी फसल पाने के लिए निम्न बातों का अवश्य ध्यान दे
- अधिक उपज के लिए ध्यान दे
- बीजोपचार कर बोवनी करे।
- समय पर बोवनी करे, छनाई समय पर करे।
- फफूंद नाशक एवं कीटनाशक दवाएं निर्घारित मात्रा में उपयोग करें।
- कली, पुष्प डोडा अवस्थाओं पर सिंचाई अवश्य करे।
- नक्के ज्यादा गहरा न लगाएं।
- लूना ठंडे मौसम में ही करें।
- काली मिस्सी या कोडिया से बचाव के लिए दवा छिड़काव 20-25 दिन पर अवश्य करे।
- हमेशा अच्छे बीज का उपयोग करे।
- समस्या आने पर तुरंत रोगग्रस्त पौधों के साथ कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से सम्पर्क करे।
- खसखस उत्पादन के लिए डोड़ा पूर्ण पकने पर ही कटाई करे।
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