आत्मविश्वास और स्नेह
आत्मविश्वास और स्नेह ऐसे दो गुण है जो आपके आचरण में होने चाहिए | अगर आप एक सफल और उत्तम इंसान बनना चाहते है तो ये विशेषताए अपनाएं |
यही दो लक्षण एक व्यक्ति को साधारण से विशेष बनाते है | दो कहानियों के माध्यम से आपको पता चलेगा की जीवन में ये गुण कितने महवपूर्ण है | पहली कहानी उस व्यक्ति की है जिसमे आत्मविश्वास नहीं होता और दूसरी कहानी उस व्यक्ति की है जिसमे स्नेह नहीं है |
विश्वास या कॉन्फिडेंस क्या है ? कॉन्फिडेंस का मतलब है विश्वास : वो अनुभूति, ज्ञान या भरोसा जो हम किसी वस्तु या व्यक्ति पर करते है | जैसे की अपने पिता पर, “वो है पीछे तो सब देख लेंगे ” भगवन पर “वो है तो सब ठीक होगा ” आपने आप पर ” मैं हूँ, सब ठीक कर दूंगा ” इस अपने ऊपर के विश्वास को हम सेल्फ कॉन्फिडेंस या आत्मविश्वास कहते है |
ऋषि मुनि हमें आत्म चिंतन के लिए कहते है, अपनी शक्तियों को, अपनी गलतियों को, अपनी कमियों को, अपनी आतंरिक ऊर्जा को पहचानना, अपने को इस जागृत विश्व की ऊर्जा का एक अंश देखना, यही आत्म चिंतन है | सकरात्मक ऊर्जा जब आपके पास होती है तो आप के साथ सब अच्छा ही होता है, नकरात्मक ऊर्जा से कुछ गलत होने की आशंका होती है | अगर हम सकारात्मक सोच रखते है, तो एक भावना जो निष्कपट है, स्नेह से परिपूर्ण है, दयालु है, शुभ है, उत्तम है आपके सभी कृत्यों को सफलता की राह पर ले जाती है | आत्म चिंतन से आत्म विश्वास बढ़ता है | आत्म विश्वास क्यों आवश्यक है और प्रभावाशाली है शायद इस कहानी को पढ़कर आपको पता चलेगा |
आत्म विश्वास
एक व्यापारी था, जो क़र्ज़ में डूबा हुआ था और कोई रास्ता नहीं दिख रहा था | लेनदार उसक पीछा कर रहे थे अपने पैसे के लिए, जिनसे क़र्ज़ लिया था वो बैंक भी उसके पीछे थे | एक पार्क की बेंच पर जा कर वो सोचने लगा की कैसे मैं इस मुसीबत से कैसे पार पाया जा सकता है | अपने सर को पकड़ को रोने ही वाला था की तभी एक बूढ़े से आदमी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा की बेटा तुम परेशान लगते हो बताओ क्या परेशानी है | एक अनजान आदमी को यूँ पूछते देख व्यापारी ने अपना दुखड़ा उसके सामने रख दिया | व्यापारी की बात सुनने के बाद उस बूढ़े आदमी ने कहा मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ |
उसने व्यापारी का नाम पुछा और एक चेक निकाल कर उसका नाम लिखा और उसकी जेब में रख दिया, बोला ये पैसे रख लो, आज से एक साल बाद फिर मिलना और ये पैसे मुझे लौटा देना, और थोड़ी देर में वो वहां से चला गया | व्यापारी ने चेक देखा तो वो १ करोड़ का था और जिसका हस्ताक्षर था वो शहर का सबसे अमीर उद्योगपति था |
उसे सोचा इतने पैसे तो मेरे जरूरत से भी जयादा है, फिर उसने सोचा की अब पैसे आ गए है अब सोचते है की क्या करना है | वो अपने ऑफिस गया और चेक तो तिजोरी में रख दिया और सोचा क्या मैं अपने बिज़नेस को बचा सकता हूँ और ठान लिया की वो ये चेक का इस्तेमाल नहीं करेगा | अब मन में शांति थी, एक भरोसा था, एक ऊर्जा थी, और दूने उत्साह के साथ उसे अपने मुसीबतो से लड़ने का फैसला किया |
फिर उसने लेनदारों और बैंक से बात की और थोड़े से समय और माँगा, अपनी गलती ठीक की, अपना सामान को दूसरे बाज़ारो में जा कर बेचा, अपने कर्ज को चुकाया, लेनदारों के भी पैसे वापस किये और कुछ महीनो में फिर से वो मुनाफा कमा रहा था | फिर इस तरह से एक साल बीत गया और व्यापारी का बिज़नेस और भी बढ़ गया और वो उस चेक के साथ फिर उसी पार्क में गया जहाँ पर उसे वो बूढ़ा मिला था | वो उससे बात करने ही वला था की पीछे उसने एक आदमी को दौड़ते देखा, उसने आकर उस बूढ़े को पकड़ लिया और कहा की ये एक पास वाले आश्रम में रहते है और अक्सर पार्क में आकर लोगो को अपना परिचय देने लगते है और अपने को शहर का सबसे अमीर आदमी बताते है | कृपया माफ़ करे अगर उन्होंने आपको परेशान किया |
व्यापारी हैरान रह गया, वो सोच रहा था की इतने दिन मैं क़र्ज़ चुका कर दुनिया के शहरों में घूम घूम कर अपना माल बेचता रहा, सोच कर की मेरे पास इतने पैसे तो है ही, जो की कभी थे ही नहीं | उसको समझ में आ गया की ये सब उसकी मन की शांति और आत्मविश्वास का असर था | उस फर्ज़ी चेक ने उसे वो मन की शांति और कॉन्फिडेंस का एह्साह कराया था जिसकी बदौलत वो इतने बड़े काम कर गया |
जीवन में जब हम दूसरो से स्नेह नहीं करते हम कई चीज़ो से अपने आप को वंचित कर लेते है | लोग हमसे दूर हो जाते है और हम भी उनसे अलग हो जाते है | स्नेह, कस्र्णा, अनुराग वो भावनाओं के नाम है जो आपको सबसे जोड़ कर रखती है | ये आपको अशिष्ट, असभ्य, रूखा और अभद्र बनने से रोकती है | अगर स्नेह है तो आप दूसरो का आदर करेंगे, दूसरो को समझेगे और अपनी जीवन में उनको उचित स्थान देंगे |
माँ
हम अपनी माँ से प्यार करते है पर शक्ति को अपनी माँ से तनिक भर भी स्नेह नहीं था | क्योंकि शक्ति की माँ की एक ही आँख थी, वो उससे नफरत करता था, हर जगह उसको शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी | उसकी माँ आसपास के घर का काम करके अपना घर चलाती थी | शक्ति के स्कूल में एक उत्सव था, परिवार को भी आमंत्रण था, माँ शक्ति के स्कूल चली आई और शक्ति से मिली पर वो इतना शर्मिंदा हो गया उसे देख कर की वो वहां से भाग गया | अगले दिन वो घर आकर रोने लगा क्योकि उसको दोस्तों ने उससे पुछा की क्या तुम्हारी माँ की एक ही आँख है |
वो माँ के पास नहीं रहना चाहता था, सोचता था ये मर क्यों नहीं जाती, उसके कारण उसको इतना नीचा तो नहीं देखना पड़ता | माँ से झगड़ा कर वो कहता की उसे अकेला छोड़ दो, माँ के कारण उसके दोस्त उस पर हँस रहे है | माँ ने समझने की कोशिश की पर वो सुना नहीं तो माँ फिर कुछ नहीं बोली और काम पर चली गयी | शक्ति को माँ की भावनाओं की कोई चिंता नहीं थी, उसने कभी नहीं सोचा की माँ को कैसा लगेगा |
धीरे धीरे इसी तरह समय बीतने लगा और शक्ति जी जान से पढ़ाई करने लगा क्योकि वो अपनी माँ से दूर जाना चाहता था | एक दिन जब उसका कॉलेज में प्रवेश मिल गया तो वो माँ को छोड़ पढ़ने चला गया | क्योकि वो पढ़ने में तेज़ था उसे छात्रवृत्ति मिल गयी और फिर एक अच्छी नौकरी | माँ से रिश्ता तोड़ कर वो दूसरे शहर में बस गया |
कुछ समय पश्चात उसने शादी कर ली और बच्चे भी हो गए | इतने सालो से शक्ति माँ से नहीं मिला था और न कभी कोशिश की थी | जीवन सुख से बीत रहा था की एक दिन शक्ति के दोस्तों से पूछ कर पता, माँ आ गयी | अभी तक माँ ने बहू और बच्चों को नहीं देखा था | जब वो घर पर थी बच्चे सोच रहे थे ये कौन है जो अपने आप को दादी कह रही रही है, मैंने माँ को चले जाने को कहा और चिल्लाया की आगे से यहाँ पर आने की ज़रुरत नहीं है | बूढी माँ ने धीरे से ये बोल कर की शायद वो किसी गलत घर पर आ गयी है जल्दी से चली गयी |
एक दिन शक्ति को किसी काम से अपने शहर जाना हुआ जब वो पंहुचा तो अपनी पुरानी गली एक बार देखने का मन हो आया | जब वो गली में पहुंचा तो उसकी माँ का वही पुराना, छोटा सा घर बंद था | पड़ोसियों से पूछने पर पता चला की माँ पिछले महीने गुजर गयी थी और उन्होंने उसका अंतिम संस्कार कर दिया है, पर वो एक चिट्टी अपने बेटे के नाम छोड़ गयी है |
मेरे प्यारे से बेटे,
मैं तुम्हारे बारे ही दिन रात सोचती रहती हूँ, मुझे माफ़ कर देना की मैं तुम्हारे घर आई और तुम्हे बुरा लगा | अब फिर से भी चाहूँ भी तो इस बिस्तर से उठ जा तुमसे मिलने नहीं जा सकती हूँ | मुझे माफ़ करना की जब तुम बड़े हो रहे थे तब तुम्हें मेरे कारण कई बार शर्मिंदा होना पड़ा |
बेटा जब तुम छोटे थे तब दुर्घटना में तुम्हारे पिता की मृत्यु हो गयी थी, उसी दुर्घटना में तुम्हारी एक आँख चली गयी थी, क्योंकि मैं माँ थी तो मैं अपने बेटे को एक आँख के साथ नहीं देख सकती थी | इसलिए मैंने अपनी एक आँख तुम्हें दे दी | मैं खुश हूँ की मैं न सही मेरी आँख के साथ तुम इस दुनियाँ को देख रहे हो |
शायद जब तुम्हें ये चिट्ठी मिले तब तक मैं दूर जा चुकी होंगी पर तुम्हारे लिए ढेर सारा प्यार छोड़कर |
सदा खुश रहना
तुम्हारी माँ
Agar aapko ye Blog padh kar achcha laga aur kuch achcha ya naya sikha aapne toa apne dosto ko bhi sikhaye. Aur unhe ye link share kare. Humari ye koshish rahegi ke aapko hum rozana kuch naya sikhaye.
Agar aapko humse kuch poochna hai toa comment me aap pooch sakte hai.